!! Prithviraj chauhan Jayanti !! 2020 Image पृथ्वीराज चौहान !! HD wallpaper and story !! Prithviraj Chauhan History in Hindi


Chakarwati Mahan Samrat Shri Prithviraj 


चक्रवर्ती सम्राट
हिंदू कुलभूषण चक्रवर्ती सम्राट पृथ्वीराज चौहान जी की जयंती पर शत शत नमन.. किस पर दया दिखानी है किस पर नहीं, आज शिक्षा लें उनके इतिहास से।

पृथ्वीराज चौहान भारतीय इतिहास मे एक बहुत ही अविस्मरणीय नाम है. हिंदुत्व के योद्धा कहे जाने वाले चौहान वंश मे जन्मे पृथ्वीराज आखिरी हिन्दू शासक भी थे. महज 11 वर्ष की उम्र मे, उन्होने अपने पिता की मृत्यु के पश्चात दिल्ली और अजमेर का शासन संभाला और उसे कई सीमाओ तक फैलाया भी था, परंतु अंत मे वे विश्वासघात  के शिकार हुये और अपनी रियासत हार बैठे, परंतु उनकी हार के बाद कोई हिन्दू शासक उनकी कमी पूरी नहीं कर पाया . पृथ्वीराज को राय पिथोरा भी कहा जाता था . पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही एक कुशल योध्दा थे, उन्होने युध्द के अनेक गुण सीखे थे. उन्होने अपने बाल्यकाल से ही शब्ध्भेदी बाण विद्या का अभ्यास किया था

पृथ्वीराज चौहान का जन्म
       धरती के महान शासक पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 मे हुआ. पृथ्वीराज अजमेर के महाराज सोमेश्र्वर और कपूरी देवी की संतान थे. पृथ्वीराज का जन्म उनके माता पिता के विवाह के 12 वर्षो के पश्चात हुआ. यह राज्य मे खलबली का कारण बन गया और राज्य मे उनकी मृत्यु को लेकर जन्म समय से ही षड्यंत्र रचे जाने लगे, परंतु वे बचते चले गए. परंतु मात्र 11 वर्ष की आयु मे पृथ्वीराज के सिर से पिता का साया उठ गया था, उसके बाद भी उन्होने अपने दायित्व अच्छी तरह से निभाए और लगातार अन्य राजाओ को पराजित कर अपने राज्य का विस्तार करते गए। पृथ्वीराज के बचपन के मित्र चंदबरदाई उनके लिए किसी भाई से कम नहीं थे. चंदबरदाई तोमर वंश के शासक अनंगपाल की बेटी के पुत्र थे . चंदबरदाई बाद मे दिल्ली के शासक हुये और उन्होने पृथ्वीराज चौहान के सहयोग से पिथोरगढ़ का निर्माण किया, जो आज भी दिल्ली मे पुराने किले नाम से विद्यमान है।


पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम गाथा
पृथ्वीराज की बहादुरी के किस्से जब जयचंद की बेटी संयोगिता के पास पहुचे तो मन ही मन वो पृथ्वीराज से प्यार करने लग गयी और उससे गुप्त रूप से काव्य पत्राचार करने लगी | संयोगिता के अभिमानी पिता जयचंद को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी बेटी और उसके प्रेमी पृथ्वीराज को सबक सिखाने का निश्चय किया ।

जयचंद ने अपनी बेटी का स्वयंवर आयोजित किया जिसमे हिन्दू वधु को अपना वर खुद चुनने की अनुमति होती थी और वो जिस भी व्यक्ति के गले में माला डालती वो उसकी रानी बन जाती ।  जयचंद ने देश के सभी बड़े और छोटे राजकुमारों को शाही स्वयंवर में साम्मिलित होने का न्योता भेजा लेकिन उसने जानबुझकर पृथ्वीराज को न्योता नही भेजा । यही नही बल्कि पृथ्वीराज को बेइज्जत करने के लिए द्वारपालों के स्थान पर पृथ्वीराज की मूर्ती लगाई ।
 पृथ्वीराज को जयचंद की इस सोची समझी चाल का पता चल गया और उसने अपनी प्रेमिका सयोंगिता को पाने के लिए एक गुप्त योजना बनाई ।  स्वयंवर के दिन सयोंगिता सभा में जमा हुए सभी राजकुमारों के पास से गुजरती गयी ।  उसने सबको नजरंदाज करते हुए मुख्य द्वार तक पहुची और उसने द्वारपाल बने पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में हार डाल दिया । सभा में एकत्रित सभी लोग उसके इस फैसले को देखकर दंग रह गये क्योंकि उसने सभी राजकुमारों को लज्जित करते हुए एक निर्जीव मूर्ति का सम्मान किया ।
prithviraj chauhan statue
लेकिन जयचंद को अभी ओर झटके लगने बाकि थे  । पृथ्वीराज उस मूर्ति के पीछे द्वारपाल के वेश में खड़े थे और उन्होंने धीरे से संयोगिता को उठाया और अपने घोड़े पर बिठाकर द्रुत गति से अपनी राजधानी दिल्ली की तरफ चले गये । जयचंद और उसकी सेना ने उनका पीछा किया और परिणामस्वरूप उन दोनों राज्यों के बीच 1189 और 1190 में भीषण युद्ध हुआ जिसमे दोनों सेनाओको काफी नुकसान हुआ जब पृथ्‍वीराज चौहान ने आंखें गंवाने के बाद मोहम्‍मद ग़ोरी को उतार दिया था मौत के घाट बसंत पंचमी के दिन ही अंतिम हिंदू शासक पृथ्‍वीराज चौहान ने मोहम्‍मद ग़ोरी को मौत के घाट उतार दिया था.  पृथ्‍वीराज चौहान ने जिस तरह मोहम्‍मद ग़ोरी का वध किया था वह वाकया बड़ा दिलचस्‍प और हैरतअंगेज है।


बसंत पंचमी का बड़ा देश भर में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. बसंत पंचमी हिंदूओं के बड़े त्‍योहार में से एक है. पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार इस दिन विद्या की देवी सरस्‍वती का जन्‍म हुआ था. बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्‍वती की पूजा की जाती है. साथ ही इसी दिन से ऋतुराज बसंत प्रारंभ होता है. आज का दिन दिल्‍ली पर शासन करने वाले अंतिम हिंदू शासक पृथ्‍वीराज चौहान के शौर्य और पराक्रम के लिए भी याद किया जाता है. बता दें कि अंतिम हिन्दूराजा के रूप में प्रसिद्ध पृथ्वीराज पंद्रह वर्ष की आयु में राज्य सिंहासन पर आरूढ़ हुए. पृथ्वीराज की तेरह रानियां थी. 1192 ईसवीं में बसंत पंचमी के दिन ही पृथ्‍वीराज चौहान ने आंखें न होने के बावजूद अपने दुश्‍मन मोहम्‍मद ग़ोरी को मौत के घाट उतार दिया था. पृथ्‍वीराज चौहान ने जिस तरह मोहम्‍मद ग़ोरी का वध किया था वह वाकया भी बड़ा दिलचस्‍प और हैरतअंगेज है।
इतिहासकारों की मानें तो पृथ्‍वीराज चौहान और मोहम्‍मद ग़ोरी के बीच तराइन के मैदान में दो बार युद्ध हुआ था. पहले युद्ध में ग़ोरी को मुंह की खानी पड़ी. कहते हैं पृथ्‍वीराज चौहान उदार हृदय वाले थे और उन्‍होंने युद्ध में शिकस्‍त देने के बावजूद ग़ोरी को जिंदा छोड़ दिया. पर दूसरी बार तराइन के मैदान में जब युद्ध हुआ तब ग़ोरी जीत गया और उसने पृथ्‍वीराज को नहीं छोड़ा. वह पृथ्‍वीराज चौहान को अपने साथ अफगानिस्‍तान ले गया और वहां उनकी आंखें फोड़ दीं. ग़ोरी का प्रतिशोध यही शांत नहीं हुआ और उसने उन्‍हें जान मारने की ठान ली

पृथ्वीराज चौहान  शब्‍दभेदी बाण चलाने के उस्‍ताद थे. वह आवाज सुनकर तीर चला सकते थे. ग़ोरी ने मृत्युदंड देने से पहले उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा  पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई ने ग़ोरी को ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत करने का परामर्श दिया. ग़ोरी मान गया और उसने ठीक वैसा ही किया जैसा कि चंदबरदाई ने कहा था. तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
पृथ्वीराज चौहान अपने प्रिय मित्र चंदबरदाई का इशारा समझ गए और उन्‍होंने तनिक भी भूल नहीं की. उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगा लिया कि ग़ोरी कितनी दूरी और किस दिशा में बैठा है. फिर क्‍या था उन्‍होंने जो बाण मारा वह सीधे ग़ोरी के सीने में जा धंसा. इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे का वध कर आत्मबलिदान दे दिया. इतिहासकारों की माने तो 1192 ईसवीं की यह घटना भी बसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी।








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